दृष्टिकोण
मदन जैन का काव्य संग्रह "फिक्र के परिन्दे” पढ़ा। जगह जगह जिंदगी की सच्चाइयों, सुख-दुःख, कलह, उग्रवाद, मानवीय मूल्यों का बिखराव तथा वर्तमान की भयानक चुनौतियों के सजीव चित्र घंटों अपनी ओर देखने को मज़बूर करते हैं । सिद्धहस्त चित्रकार के सजीव रंग तथा कवि की कोमल अनुभूतियों का अनूठा सम्मिश्रण दिल की गहराइयों में अनायास ही उतरता चला जाता है
कहकशां, नाजुक तितलियां
शबनम और सफेद मोती
फूल और खुशबू
या -सरे मिज़गां ठहरा हुआ आँसू
चुप हैं अजंता की बोलती तस्वीरें
शायद यहां जिंदगी लिबास बदलती है।
मंजिलें बहुत करीब हैं शायद
(अल्फ नंगी)
एक और चित्र :
शोर - बूटों के खड़ाके
सोचो साल माह और दिन
जो कयामत के दिन हैं
जिस दिन रूहें कब्रों से निकलेंगी
शायर और ताजर रूहें
बेबस और जाबर रूहें
( फना की तारीख)
काव्य और चित्रकला की सुकुमारता के अतिरिक्त कवि जगह जगह वर्तमान से भी साक्षात्कार करता हुआ दिखाई देता है :
कुछ समझ नहीं आता
कहां से आ गए
लहू रंग बादलों के हुजूम
(लहू रंग बादलों के हुजूम)
दूर दूर तक ताहद्दे नजर
सुर्ख सुर्ख है जमीन का जिस्म
लगता है ख्यालात भी जल जाएंगे
(ख्यालात भी जल जाएंगे)
हिन्दु का जिस्म – सिख का जिस्म
मुस्लमान का जिस्म
एक जिस्म-आदमी का
कटे हुए दरख्त की तरह गिरता है।
मरने वाला कौन है ?
हर कोई पूछता है
मगर- –मुझे लगता है कि—में हूँ ।
(मैं हूँ )
इतिहास के विद्यार्थी श्री जैन ने अपनी कविता का तानाबाना अक्सर धार्मिक एवं ऐतिहासिक वीर पुरुषों के संदर्भों से बुना है । कवि पाठकों को अनेक नगरों, युद्ध स्थलों तथा ऋषि मुनियों के दर्शन करवाता है जैसे महाभारत, कलिंग, सायबेरिया |
सिकन्दर और पोरस का युद्ध, राम और कृष्ण, महावीर, बुद्ध, ईसा, नानक, बाबरो अकबर, नादरो अबदाली, गोर्वाचोव इत्यादि । इतिहास, दर्शन एवं धर्म का काव्यमय चित्रण सचमुच कवि के विस्तृत ज्ञान का परिचायक है, सभी कविताओं में भाव, भाषा, प्रवाह, शैली एवं शब्दचयन का अनूठा सामञ्जस्य दृष्टिगोचर होता है ! प्रत्येक कविता एक बात कहती है; एक नई बात जो सुन्दर भी है और प्यारी भी ! जिस में चिंता और चिंतन के पक्षी असीम ऊँचाइयों तक उड़ानें भरते हुए चाँद, सूरज, कहकशां बिजलियां और एटमी धूल से साक्षात्कार करते हैं और जमीन पर रेत, मिट्टी, फूल-कलियां, शीशम और बटवृक्षों की मीठी शीतल छाया से होकर गुजरते हैं । इन के साथ साथ उड़ता है है सच्चा जागरूक कवि । कवि के साथ उड़ानें भर कर मुझे भी हार्दिक आनन्द मिला है इसके लिए चाहे श्रम भी करना पड़ा है, मुझको ! उड़ानें वास्तव में बहुत ऊँची हैं।
जैन के शब्दों में
आसां नहीं जो पहुँचे तुझ तक कोई 'मदन'
तेरे ख्याल आजकल उकाबों से हो गए ।
मेरे दृष्टिकोण से "फिक्र के परिन्दे" उच्चकोटि का काव्यसंग्रह है जिस के लिए श्री मदन जैन बधाई के पात्र हैं। समस्त साहित्य जगत् इस का स्वागत करेगा । ऐसा मेरा विश्वास है ।
कृष्ण भवन
231/3 सब्जीमंडी-कुरुक्षेत्र
कृष्ण चन्द्र पागल